गिर गाय (Gir Cow): जानें खासियत और पहचान के तरीके

गिर गाय (Gir Cow): जानें खासियत और पहचान के तरीके

गिर गाय भी देश की दुधारू गायों में गिनी जाती है इस गाय को काठियावाड़, सूरती और दक्कन जैसे नामों से भी जाना जाता है इस नस्ल का मूल जन्म स्थान काठियावाड़ है इस वजह से इसको यह नाम भी दिया गया है इस नस्ल के शुद्ध गाय खोजना बहुत मुश्किल है इस नस्ल की खासियत यह भी है कि यह नस्ल भारत की सबसे पुरानी नस्ल भी है.

गिर गाय की पहचान कैसे करें

गिर गाय की पहचान करने के लिए उसके शरीर को ध्यान से देखें इनका शरीर सुव्यवस्थित और गठीला होता है इनका माथा कुछ कुछ उठा हुआ होता है इनके कान लंबे और कुछ ऐंठे हुए होते हैं जबकि इनके सींग टेढ़े होते हैं जो सिर पर पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं. इन गायों के जबड़े शक्तिशाली और गला गलकंबल से ढका हुआ होता है इनकी आँखें बड़ी बड़ी होती हैं जिनके ऊपर बड़ी बड़ी भौंह भी होती है.

गिर गायों का रंग धब्बेयुक्त लाल से लेकर चितकबरा होता है लेकिन अधिकतर लोग सफेद रंग की गिर गाय जिसके चारों ओर गहरे लाल और कत्थई रंग के धब्बे हों, पसंद करते हैं. गिर गाय की ऊंचाई करीब 127 सेंटीमीटर, लंबाई करीब 140 सेंटीमीटर और वजन करीब 390 किलो होता है.

गिर गाय के उपयोग या लाभ

जैसा कि हम पहले ही जान चुके हैं कि यह एक दुधारू नस्ल है मतलब यह दूध के लिए पाली जाती है यह नस्ल गांवों में 300 दिन के एक ब्यांत में लगभग 910 किलो दूध देती है लेकिन अच्छे कृषि फॉर्मों पर यह यह गाय सही से पाली जाए तो यही गाय करीब 2500 किलो दूध देती है. गिर गाय पहली बार लगभग 4 वर्ष की आयु में ब्यान्ती है.

कहां रखी गई हैं गिर गायें

गिर गायों को देश में कई जगह पर रखा गया है जिनके नाम आगे दिए गए हैं.

  • पशु प्रजनन फार्म, कोपरडेम, सत्तारी (गोवा)
  • पिंजरपोल संस्था संघ, पैट बाघ, गणपति मन्दिर, संघ (महाराष्ट्र)
  • पिंजरपोल, भुलेश्वर, मुम्बई (महाराष्ट्र)
  • पिंजरपोल, पंचवटी, नासिक (महाराष्ट्र)
  • पशु प्रजनन फार्म, दाग, झालेवर (राजस्थान)
  • पशु प्रजनन फार्म, जूनागढ़ (गुजरात)
  • आश्रम गोशाला, साबरमती, बिडजफार्म, डाक-लाली, जिला खेड़ा (गुजरात)

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