प्याज का यह एक बहुत हानिकारक रोग है जो फफूंदी के कारण होता है यह रोग प्याज की पत्तियों, गांठों और बीज स्तम्भों पर आक्रमण करता है प्याज के जिस भी भाग में यह रोग लगा हुआ होता है वहां पर छोटे, सफ़ेद धंसे हुए धब्बे बन जाते हैं जिनका बीच का भाग बैंगनी रंग का होता है इन धब्बों के किनारे लाल या बैंगनी रंग के होते हैं और उनके चारो ओर एक पीला छेत्र होता है रोग के प्रभाव से पत्तियां और तने सूखकर गिर जाते हैं और जब रोग तेजी पकड़ता है तो उसके कांड भी सड़ने लगते हैं.
रोकथाम कैसे करें
इस रोग से बचाव करने के लिए बीज को बोते समय ही ध्यान देना चाहिए। बीज को थायराम दवा से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए इसके आलावा रोग के लग जाने पर इंडोफिल एम 45 की 2.5 किलो मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 8 से 10 दिन के अंतर से छिड़काव करना चाहिए और लगभग 4 से 5 छिड़काव की जरुरत होती है इसके साथ ही जिस भी खेत में यह रोग लग गया हो उस खेत में आने वाले 2 से 3 वर्षों तक प्याज या लहसुन की फसल को नहीं बोना चाहिए.
