साहीवाल नस्ल एक दुधारू गाय है जिस कारण से इसकी मांग भी अधिक है इस गाय की नस्ल को लोला, मांटगोमरी, लंबीवार और मुल्तानी नाम से भी जाना जाता है इस नस्ल का जन्म स्थान पाकिस्तान का मांटगोमरी जिला है जिसकी वजह से इसको इसे यह नाम मिला है. भारत में इस नस्ल के पशु बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और हरियाणा के कुछ भागों में पाए जाते हैं.
साहीवाल गाय को कैसे पहचानें
इस नस्ल का शरीर लाली लिए हुए हल्के पीले रंग का होता है लेकिन इसमें कुछ पशु सफेदी रंग लिए हुए भी होते हैं और कुछ कुछ पशु सफेदी लिए हुए गहरे भूरे या लगभग काले रंग के मिल जाते हैं लेकिन भारत में लोग सफेद रंग की साहीवाल गायों को कम पसंद करते हैं. ये गायें लंबी और मांसल होती हैं इनके सींग मोटे और छोटे माथा चौड़ा और शरीर भारी भरकम होता है इनकी खाल चिकनी और ढीली होती है.
साहीवाल नस्ल की गायें करीब 124 सेंटीमीटर ऊंचाई की, 142 सेंटीमीटर लंबाई की और करीब 400 किलो वजन तक ही होती हैं.
साहीवाल गाय के लाभ
इस नस्ल की गायें बड़ी दुधारू होती हैं गांवों में ये गायें एक ब्यांत में औसतन 1500 किलो दूध देती हैं लेकिन राजकीय फार्मों में यही गायें 300 दिनों के ब्यांत में लगभग 2300 से 2600 लीटर दूध दे रही हैं इस नस्ल की गायें लगभग 13 से 14 महीने के अंतर से ब्यान्ती रहती हैं और पहली ब्यांत पर इनकी आयु लगभग 3.5 वर्ष होती है. साहीवाल नस्ल के कुछ विशेष पशुओं ने तो 300 दिनों के एक ब्यांत में लगभग 4600 किलोग्राम से भी अधिक दूध दिया है.
कहां रखी गईं हैं साहीवाल गायें
देश में कुछ फार्मों पर इस नस्ल की गायों को रखा गया है.
- नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट, करनाल, हरियाणा
- राजकीय पशु फॉर्म, हिसार, हरियाणा
- पशु प्रजनन फॉर्म, चक्र गजरिया, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
- सैनिक डेयरी फॉर्म, मेरठ, उत्तर प्रदेश
- प्रेसिडेंट एस्टेट, नई दिल्ली
- पशु प्रजनन फॉर्म, बेली चरण, जम्मू कैंट, जम्मू और कश्मीर
- अमृतसर पिंजरापोल गौशाला, पंजाब
देश के इन जगहों पर अभी इस नस्ल की गायों को रखा गया है. इस नस्ल की गायों की विशेषता इनकी दूध की मात्रा है और इनका लंबा – चौड़ा शरीर भी.
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